बीमारी जड़ पकड़े रही, लेकिन उसने हार नहीं मानी। कुशल तैराक बनकर दिखा दिया। कई मुकाबलों में हिस्सा लिया। महाराष्ट्र के सहकारिता विभाग में कार्यरत पिता अविनाश खैरनार याद करते हैं, पैरों से शुरू होकर रोग ने धीरे-धीरे पूरे शरीर को बेजान बना दिया। डॉक्टरों ने बताया कि जीबीएस यानी गुलियन बैरी सिंडोम है। लाखों में से एक ही इसकी चपेट में आता है।
तैरने के अभ्यास से प्रसाद ने दुनिया बदल ली। 2004 में राज्यस्तरीय स्पर्धा के रिले में स्वर्ण पदक मिला तो उसका आत्मविश्वास लौटा। अब तक वह 158 पदक जीत चुका है। हाल ही में गोवा में हुई स्पर्धा में प्रसाद ने दो रजत पदक जीते।
सीख : मुसीबत में सारे रास्ते बंद नहीं होते। बची-खुची क्षमताओं से अपने लिए अनुकूल रास्ता तलाशिए। उस पर आत्मविश्वास से आगे बढ़िए। प्रकृति कभी निराश नहीं करती।
बाल दिवस के अवसर पर दैनिक भास्कर ने संघर्ष से निखरे प्रतिभा संपन्न बच्चों को तलाशा। हमारे रिपोर्टर्स देश भर में इन बच्चों के बीच गए। उनके माता-पिता, गुरु, सहपाठी और पड़ोसियों से बात की। यह देखा कि ऐसी क्या बात इनमें है, जो हम बड़े भी सीख सकते हैं।
Source: bhaskar.com
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