Tuesday 9 August 2011

बकरी चराने वाली बनीं लाखों बच्चों की 'प्रेरणा'

मुजफ्फरपुर. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पटियासा गांव में एक निर्धन परिवार में जन्मी अनीता ने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय अपनी और परिवार की गरीबी दूर करने के लिए बहुत छोटे पैमाने पर शुरू किया था लेकिन आज वह 'हनी गर्ल' बन गई हैं। उनकी कामयाबी की कहानी न केवल स्कूली बच्चों को पढ़ाई जा रही है, बल्कि उनके नाम पर मधु ब्रांड लाने की भी तैयारी है।

बोचहा प्रखंड के एक पिछड़े गांव पटियासी में जन्मी 24 वर्षीया अनीता की सफलता के बारे में आज राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की चौथी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में स्कूली बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनका बचपन भी ग्रामीण परिवेश में पलने वाली आम लड़कियों की तरह ही बकरी चराने में बीता था। लेकिन उनमें आगे पढ़ाई करने की इच्छा बचपन से ही थी।


परिवार की निर्धनता देख भी नहीं मारी हार


परिवार की निर्धनता को देखते हुए उनके सपने पूरे होने के आसार नहीं दिख रहे थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए उन्होंने सबसे पहले गांव के बच्चों को ही शिक्षा देना शुरू कर दिया। इससे वह प्रारम्भिक शिक्षा का खर्च उठाने में तो सफल रहीं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए अधिक खर्च की आवश्यकता आ पड़ी, जिसके लिए उन्होंने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। शुरुआत में उन्हें इस व्यवसाय में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब भाई और पिता भी उनका हाथ बंटाते हैं। उन्होंने 2002 में दो बक्से से मधुमक्खी पालन का कार्य शुरू किया था। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने इस व्यवसाय में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय से मधुमक्खी पालन का लिया प्रशिक्षण

इस बीच उन्होंने समस्तीपुर के पूसा स्थित राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय से मधुमक्खी पालन का विधिवत प्रशिक्षण लिया। उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ मधुमक्खी पालक का पुरस्कार भी मिला है। उनके जीवन में परिवर्तन 2006 से शुरू हुआ, जब यूनिसेफ ने उनसे मिलकर उनकी सफलता की कहानी पर एक रिपोर्ट जारी की। अनीता ने बताया कि इलाके की महिलाएं पहले से ही मधुमक्खी पालन का कार्य करती थीं, लेकिन उनका तरीका पुराना था। उन्होंने महिलाओं को इसके लिए आधुनिक तकनीक बताई, जिसका लाभ आज सभी महिलाओं को मिल रहा है। यही नहीं, आज की महिलाएं देश के अन्य क्षेत्रों में जाकर भी मधुमक्खी पालन का व्यवसाय कर रही हैं। अनीता के अनुसार, गरीबी के कारण स्वयं उन्होंने और उनके परिवार ने बहुत मुश्किलों का सामना किया, लेकिन आज उनकी सफलता क्षेत्र की एक खास पहचान है। इस पर उन्हें गर्व है।

हर वर्ष हो रहा तीन से चार लाख रुपये का लाभ

जब उन्होंने इस व्यवसाय की शुरुआत की थी तब पहले वर्ष उन्हें 10,000 रुपये का लाभ हुआ था। लेकिन आज वह प्रति वर्ष 200 से 300 क्विंटल तक मधु का उत्पादन कर रही हैं, जिससे प्रति वर्ष उन्हें तीन से चार लाख रुपये का लाभ हो रहा है। अनीता के पिता जनार्दन सिंह भी अपनी बेटी की कामयाबी से खुश हैं। उनका कहना है कि ग्राहक बड़े पैमाने पर यहां से मधु की खरीदारी करते हैं। वहीं, गांव की एक महिला गीता देवी ने कहा कि अनीता ने न केवल अपना जीवन बदला, बल्कि गांव की किस्मत भी बदल दी। आज गांव की करीब 500 महिलाएं मधुमक्खी पालन कर रही हैं। अब अनीता मधु ब्रांड लाने पर विचार किया जा रहा है।


Source: bhaskar.com

Monday 8 August 2011

कैंसर से जूझते हुए भी राजस्थान के शक्ति ने टॉप किया

कैंसर बीमारी से जूझते हुए राजस्थान के चूरू के छात्र शक्ति सिंह ने दसवीं क्लास में टॉप कर दिखाया है। वह भी ऐसे में जब उसके पिता भी घर से दूर चीन की सीमा पर तैनात थे। वे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में कांस्टेबल हैं।

कठिनाइयों के बावजूद नहीं हारी हिम्मत

शक्ति को पिछले साल हड्डियों के कैंसर का पता चला जब वह दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा था। इसके बाद शुरू हुआ पढ़ाई के साथ ही कीमोथेरेपी के लिए नियमित तौर पर चूरू से दिल्ली एम्स में इलाज के लिए आने का सिलसिला। पिता के बाहर होने के कारण वह अपनी मां और छोटी बहन के साथ दिल्ली आता था। लेकिन बीमारी और विषमताओं के बावजूद उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। क्लास में वह 88 प्रतिशत अंक के साथ अव्वल रहा। अगले माह शक्ति का ऑपरेशन होगा जिसमें उसके पांव से कैंसर प्रभावित हिस्सों को हटाया जाएगा।

आगे रहने की राह चुनी

पंद्रह वर्षीय शक्ति सिंह को रविवार को यहां भारत तिब्बत सीमा पुलिस संगठन के कार्यक्रम में इस उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया। इस मौके पर शक्ति ने कहा, ‘मैंने और परिवार ने कुछ समय के लिए कैंसर की परेशानियों के बारे में सोचा। लेकिन फिर मैंने आगे चलते रहने की राह चुनी।, हालांकि हो सकता है मेरे लिए बहुत आगे के लिए कुछ नहीं हो।’ संगठन ने शक्ति की बीमारी और इलाज की जरूरत को देखते हुए उसके पिता महेंद्र सिंह राठौर को हिमाचल प्रदेश में चीन सीमा से हटाकर अब राजधानी में तैनात कर दिया है।

Source: bhaskar.com

Thursday 4 August 2011

इस हौसले को सैल्यूट करने को दिल चाहे!

मुंद्रा। हमारे शरीर के किसी भी अंग में जरा सी तकलीफ पैदा हो जाए तो हरेक काम मुश्किल लगने लगता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए शारीरिक अपंगताएं मायने नहीं रखतीं। शायद इस बात को साबित करने के लिए गुजरात, मांडवी के रहने वाले विजय पोपटलाल चौहाण का उदाहरण सटीक बैठता है।

लगभग 24 साल पहले एक दुर्घटना में हाथ गंवा देने के बाद भी विजय ने हार नहीं मानी और अपनी अपंगता को खुद पर हावी नहीं होने दिया। पिछले 24 वर्षों से वे एक हाथ से ही दर्जी का काम करते आ रहे हैं, जिस काम में दोनों हाथों की बहुत आवश्यकता होती है।

60 की उम्र में भी वे बटन टांकने से लेकर कपड़ा काटने और सिलने का काम बखूबी कर लेते हैं। उनकी तीन संतानें हैं, जिसमें दो बेटियों की शादी हो चुकी है और एक बेटा, जो अब उनके काम में हाथ बंटाता है। विजयजी एक मिसाल हैं, उन लोगों के लिए जो जिंदगी से जल्द हार मान जाया करते हैं। मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं, बस खुद पर विश्वास होना चाहिए।

किसी शायर ने बिल्कुल सही कहा है:
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है,
हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है।।
डरने वालों को मिलता नहीं कुछ जिंदगी में,
लडऩे वालों के कदमों में सारा जहां होता है।।

... तो क्यों न इस हौसले को सैल्यूट करने को दिल चाहे!

Source: bhaskar.com