Wednesday, 3 August 2011

इसका 'हौसला' कईयों की आंखे खोल देगा

रांची. परिस्थितियां कुछ भी करने को विवश कर सकती हैं। और जब यह अच्छे के लिए किया जाता है तो लोग उसकी दाद देने लग जाते हैं। कुछ ऐसा ही राजधानी रांची में लक्ष्मी नाम की लड़की आजकल कर रही है।

गरीबी का शिकार लक्ष्मी की छोटी-छोटी आंखों में बड़े-बड़े सपने हैं। वो उन्हें टूटने नहीं देना चाहती। लक्ष्मी रांची के कोकर इलाके में चाय बेचती है। रांची वीमेंस कॉलेज में वो अभी एमकॉम पढ़ रही है। जींस और टॉप में चाय बेचते लोग उसे देखते रह जाते हैं।
एक ओर जहां ग्राहकों के लिए वो लड़की एक आदर्श बन चुकी है वहीँ अपने परिवार के लिए लक्ष्मी। चाय बेच कर वो अपनी पढा़ई का खर्च तो निकाल ही ले रही है साथ ही परिवार का भरण पोषण भी कर रही है।
चाय ही नहीं, बल्कि आदर की मिठास भी मिलती है
पढा़ई के प्रति लक्ष्मी की यह लगन ही है कि उसने चाय बेच कर अपनी पढा़ई पूरी करने की ठान ली। एक झोपड़ीनुमा दुकान में तीन रुपये में गरमा-गरम चाय पीने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। एक कारण यह भी कि यहां चाय ही नहीं मिलती बल्कि आदर की मिठास के साथ लगन भरा व्यवहार होता है।
लक्ष्मी के पिता रामप्रवेश तांती एक प्राइवेट संस्थान में काम करते थे, लेकिन अब रिटायर हो चुके हैं। ऐसे में लगा कि अब लक्ष्मी की पढ़ाई बंद हो जायेगी, लेकिन लक्ष्मी ने ही आगे बढ़ कर कहा कि हम कुछ ऐसा करें जिसमे पूंजी कम लगे और परिवार के लिए आय भी हो जाय। फिर क्या था लक्ष्मी ने अपने पिता के साथ खोल ली एक छोटी सी चाय दुकान। हालांकि, एमकॉम में पढ़ रही बेटी को चाय दुकान पर बिठाना लक्ष्मी के पिता को अच्छा नहीं लगता। लेकिन मुफलिसी की मार और बेटी के हायर एजुकेशन का सपना टूट न जाय इसलिए लक्ष्मी खुद अपने निर्णय से चाय दुकान को चलाने लगी। पिता की नौकरी छूटे 15 साल हो गए। कमाऊ बड़ा भाई भी पिछले साल अकाल के गाल में समा गया। बचपन से पढा़ई में हमेशा अव्वल रहने वाली लक्ष्मी अपने परिवार वालों के सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाहती।
लक्ष्मी एमकॉम करने के बाद बैंक में पीओ बनना चाहती है। खाली समय में दुकान पर जब ग्राहक नहीं होते तो लक्ष्मी की पढ़ाई चलती रहती है। लक्ष्मी को कभी चाय दुकान पर ग्राहकों से कोई परेशानी नहीं होती। सभी इसके जज्बे को सलाम करते हैं।

Source: bhaskar.com

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