आज का दिन मेरी जिंदगी में बहुत खास है। स्टेनफर्ड दुनिया की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में से एक है। मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि यहां मेरा सम्मान किया जा रहा है। मैं उन सभी लोगों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे इसके लायक समझा। बहुत कम लोग जानते हैं कि मेरे पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। मैं कभी किसी ग्रैजुएशन प्रोग्राम में भी नहीं गया। इसलिए मैं नहीं जानता कि इस सम्मान समारोह को कैसे संबोधित करूं। मैं बस अपने जीवन के बारे में बता सकता हूं। मैंने अपने जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे हैं। उन्हीं से जुड़ी कुछ कहानियां मैं सुनाना चाहता हूं। मेरे जीवन की शुरुआत एक दुविधा के साथ हुई। यह दुविधा मेरी मां की थी। वह नहीं जानती थी कि मुझे कैसे पाले। जब मेरा जन्म हुआ , तब वह कॉलेज में पढ़ रही थी और बिनब्याही थी। इसीलिए उसने सोचा कि मुझे कोई अडॉप्ट कर ले तो अच्छा रहेगा। हां , वह यह जरूर चाहती थी कि मुझे जो लोग भी अडॉप्ट करें , उन्होंने कम से कम कॉलेज की पढ़ाई तो जरूर की हो। सबसे पहले एक वकील कपल ने मुझे गोद लेने की पेशकश की। लेकिन जैसे ही उन्होंने मुझे देखा , उनका विचार बदल गया। उन्होंने कहा कि वे किसी लड़के को नहीं , लड़की को गोद लेना चाहते हैं।
इसके बाद मेरी मां ने दूसरे कपल से बातचीत की। एक ही रात में सब तय हो गया। वे लोग मुझे गोद लेने को राजी थे , पर तभी मेरी मां को पता चला कि वे बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। मेरी नई मां ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। मेरे नए पिता तो हाई स्कूल भी पास नहीं थे। मेरी मां ने अडॉप्शन पेपर पर साइन करने से मना कर दिया। पर मेरे नए माता-पिता को मैं बहुत भा गया था। उन्होंने मेरी मां से वादा किया कि वे मुझे कॉलेज जरूर भेजेंगे। तब कहीं जाकर , मेरी मां तैयार हुईं। मुझे अडॉप्ट कर लिया गया। तो , यह मेरे जीवन की शुरुआत थी।
मुझे जन्म देने वाली मां का सपना पूरा हुआ। जब मैं 17 साल का हुआ तो मेरा दाखिला रीड कॉलेज में कराया गया। पर कॉलेज में दाखिला कराते समय ही मेरे माता-पिता की हालत खराब हो गई। मैं समझ गया कि मेरी कॉलेज फीस भरने में उनकी जिंदगी भर की जमा पूंजी लुट जाएगी। किसी तरह छह महीने बीते , पर तब तक मुझे अहसास हो गया था कि मैं यहां अपना समय बर्बाद कर रहा हूं और अपने माता-पिता की कमाई भी। मैंने कॉलेज छोड़ने का फैसला कर लिया। पर अभी मुझे ड्रॉप इन के तौर पर 18 महीने और गुजारने थे। नॉर्मल क्लासेज में तो मेरा मन लगता नहीं था , इसलिए मैंने कलिग्रफ़ी की क्लास में जाना शुरू कर दिया। कलिग्रफ़ी मुझे बहुत अच्छी लगती थी। कैंपस में लगे पोस्टरों , अल्मारियों की दराजों पर चिपके लेबल , सभी पर सुंदर-सुंदर शैली में उकेरे अक्षर मुझे बहुत आकर्षित करते थे। बस , मैं रोजाना कलिग्रफ़ी की क्लास में जाने लगा। कोई भी कहेगा कि साइंस छोड़कर कलिग्रफ़ी पढ़ना , कितनी बड़ी बेवकूफी है लेकिन यकीन मानिए यह मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा फैसला था। दस साल बाद जब हमने पहला मैकिनतोश कंप्यूटर बनाया तो वही कलिग्रफ़ी मेरे काम आई। यह पहली बार था कि किसी कंप्यूटर में सुंदर टाइपोग्राफी का इस्तेमाल किया गया था। अगर मैं नॉर्मल क्लास छोड़कर कैलीग्रीफी न सीखता तो मैक को कभी मल्टीपल टाइप फेस न मिलते।
इसलिए हम सभी को मानकर चलना चाहिए कि सब कुछ अच्छे के लिए होता है। आपको अपनी हिम्मत , भाग्य और कर्म पर भरोसा रखना चाहिए। मेरी दूसरी कहानी मेरे प्यार की है। वॉज और मैंने अपने माता-पिता के गैरेज में एपल की शुरुआत की। तब मेरी उम्र 20 साल थी। देखते ही देखते हमारी मेहनत रंग लाई। एपल एक छोटी सी कंपनी से दो अरब डॉलर की कंपनी बन गई। ऐसा सिर्फ दस साल में हुआ। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि मुझे अपनी कंपनी छोड़ देनी पड़ी। एपल से मुझे निकाल दिया गया। क्या किसी को अपनी ही कंपनी से निकाला जा सकता है ? मेरे साथ ऐसा ही हुआ। मेरे बहुत खास दोस्त ने कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टरों के साथ मिलकर ऐसा किया। मुझे लगा , दुनिया मुझ पर हंस रही है। मैं एक असफल आदमी हूं। मैं टूट गया। अब मेरे पास क्या था ? मेरा सब कुछ खत्म हो चुका था।
फिर मैंने सोचा , क्या सचमुच ऐसा है ? मेरा प्यार अब भी मेरे साथ है। मेरा काम ही तो मेरा प्यार है। क्या मैं फिर से शुरुआत नहीं कर सकता ? मेरे भीतर असफलता की निराशा की जगह , उत्साह की आशा ने ले ली। मैंने नेक्स्ट नाम से नई कंपनी की शुरुआत की। फिर पिक्सर बनी। पिक्सर ने ही दुनिया की पहली कंप्यूटर एनिमेटेड फिल्म टॉय स्टोरी बनाई। आज पिक्सर दुनिया का सबसे सफल एनीमेशन स्टूडियो है। इसी दौरान मेरी मुलाकात लॉरिन से हुई और बाद में हमने शादी कर ली। अगर मैं एपल से निकाला नहीं जाता तो क्या यह सब होता ? बाद में एपल ने नेक्स्ट को खरीद लिया और मैं एपल में वापस आ गया। मैं समझ गया , मेरे साथ कुछ अच्छा होना था , इसीलिए यह सब हुआ था। कई बार हमें अपने सामने का रास्ता बंद नजर आता है। फिर एकाएक कोई नया रास्ता नजर आता है और उसी पर चलकर हमें मंजिल मिलती है।
मेरी तीसरी कहानी भी भरोसे की है। जब मैं 17 साल का था , तब मैंने एक कोट पढ़ा था- अगर आप अपनी जिंदगी के हर दिन को यह मानकर जिएं कि यही आपका आखिरी दिन है तो एक दिन आप जरूर सही साबित होंगे। पिछले 33 सालों से मैं अपनी जिंदगी ऐसे ही जी रहा हूं। हर दिन मैं आइने के सामने खड़ा होता हूं और फिर खुद से पूछता हूं- अगर आज का दिन मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होता तो आज मैं क्या करता ? इसी तरह मैंने अपनी जिंदगी में सबसे अच्छी चीजों को चुना है। समय कम है इसलिए वह करो , जो खुद चाहते हो। वह नहीं , जो दूसरे तुमसे चाहते हैं। दूसरों की नहीं , खुद की आवाज सुनो।
Source: Navbharattimes.com