Saturday 25 June 2011

कभी था दाने-दाने को मोहताज, आज कर रहा लाखों की कमाई


दुमका के सुखजोरा गाँव का उपेन्द्र मांझी आज जिले के सैंकड़ों मतस्य पालकों के लिए आईकन बन चुका है। मछली उद्योग से जुड़ा़ हर कोई आज उपेन्द्र की तरह ही आगे बढऩा चाहता है। उसकी तरह ही अत्याधुनिक तरीके से मछली उत्पादन कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना चाहता है।
कठिन मेहनत व लगन से सालों भर मछली पालन कर सैकडों मतस्य पालकों के लिए एक नयी राह दिखाने वाले उपेन्द्र कभी दाने-दाने को मोहताज था, लेकिन आज वह लाखों की कमाई कर रहा हैं। स्थिति यह है कि वह अपने साथ गांव के कई बेरोज़गार युवकों को भी इससे जोडक़र उन्हें स्वालंबी बना रहा है।
कभी थी कमाई चार हजार, आज पा रहा 20-22 हजार प्रतिमाहवर्ष 1997 में पिता के असामयिक निधन के कारण उपेन्द्र की दुमका स्थित पोलटेकनिक कॉलेज में पढ़ाई छूट गयी। घर को चलाने के लिए उसने चार हजार मासिक वेतन पर एक प्राईवेट नौकरी करनी पड़ी। इसी दौरान उसने गांव के अपने दो तालाब पर मछली का जीरा डाल दिया।
छह माह के बाद वह मछली बढक़र कई किलो की हो गयी। उसने उसे निकट के बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफ कमाया। बस यहीं से उसने इस उद्योग से नाता जोड़ दिया। उपेन्द्र दैनिक भास्कर से बातचीत में कहते हैं कि वर्तमान में उसके पास अपने दो तालाब हैं और करीब 15-16 तालाब वह दूसरे से बटाई के रूप में लिया है और उसमें मछली पालन कर रहा है।
वह इन तालाबों में सालों भर मछली उत्पादन करता है। वह कहता है कि प्रति वर्ष वह करीब 80 से 100 क्विंटल मछली उत्पादन कर लेता है और उसे दुमका के अलावा गांव-देहात के हाट में ही खपा देता है। जिससे उसे प्रतिमाह करीब 20-22 हजार की कमाई हो जाती है। उसने अपने गांव के ही रामप्रवेश केवट, राजेश केवट, संजीव गुप्ता समेत कई अन्य बेरोजगार युवकों को भी जोड़ लिया है और उसे अच्छी खासी मजदूरी दे रहा है। ये सभी युवक तालाब से मछली उठाने के बाद उसे मोटरसाईकिल के पीछे खांचा में रखकर हाट में ले जाकर बेचते हैं।
बेरोजगारों को कर रहे हैं मछली उद्योग से जुडऩे के लिए प्रेरित
बेरोजगार युवकों को मछली उद्योग से जुडऩे की सलाह देते हुए उपेन्द्र कहते हैं कि अगर मेहनत व ईमानदारी से इस पेशे को किया जाये तो सरकारी नौकरी भी इसके सामने बेकार है। हालांकि वह कहते हैं कि जिला मतस्य विभाग व बैक इस रोजगार से जुडऩे के लिए इच्छुक लोगों को मदद करें तो यह हजारों व लाखों की संख्या में रोजगार प्रदान कर सकता है। जानकारी के अनुसार, वर्तमान में स्थिति यह है कि विभाग द्वारा उपेन्द्र को मतस्य मित्र के रूप में नियुक्त कर उसे अन्य मतस्य पालकों को प्रशिक्षण देने के लिए रखा है और उपेन्द्र द्वारा जिले के किसानों को अत्याधुनिक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। विभाग ने उपेन्द्र को वर्ष 2009 में आंध्र प्रदेश भेजा था जहां वह अत्याधुनिक तरीके से मछली उत्पादन का तरीका सिखकर वापस आया है।



Source: Bhaskar.com

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