Friday, 30 September 2011

इन महिलाओं के हौसले को देख आप भी कहेंगे वाह..वाह!

 
 
भोपाल। नर्मदा किनारे बसे होने के बावजूद उस गांव के बाशिंदे प्यासे थे। 60 साल तक गांव में पानी नहीं पहुंचा। गांव की महिलाओं को पानी के लिए एक किमी दूर जाना पड़ता था। नगर निगम की सीमा में होने के बावजूद शासन-प्रशासन ने इस गांव की सुध नहीं ली। रोजमर्रा के जीवन को महिलाओं के काम का हिस्सा मानते हुए पुरुषों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।

ऐसे में गांव की कक्षा पांचवीं तक पढ़ी 50 वर्षीय निर्मला विदेही ने इस कथित परंपरा को तोड़ने की ठानी। उसने महिलाओं की समिति बनाई। पीएचई के रिटायर इंजीनियर की मदद से वॉटर सप्लाई का प्लान तैयार किया और गांव में पानी पहुंचाकर ही दम लिया। आज जबलपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर नर्मदा किनारे बसे इस रमनगरा गांव के 217 में से 80 फीसदी घरों में पानी पहुंच चुका है।

ऐसे बदली तस्वीर

गांव में पानी पहुंचाने के लिए विदेही ने 2008 में चार महिलाओं की समिति बनाई। चारों ने गांव की अन्य महिलाओं से 200-200 रुपए जमा कर 30 हजार रुपए की पूंजी जुटाई। इसके बाद 11 सदस्यीय रमनगरा उदय समिति का गठन किया गया। समिति ने पीएचई से रिटायर्ड एक इंजीनियर आरपी साहू को बुलाकर तकनीकी पक्ष समझा और वाटर सप्लाई प्लान तैयार कराया।

अब समस्या यह थी कि नर्मदा तट से गांव तक पाइप लाइन बिछाने पैसा तो था लेकिन पानी की टंकी का इंतजाम नहीं था, ऐसे में गांव की ही पार्षद रुक्मणि गोटिया और तत्कालीन महापौर सुशीला सिंह ने समिति की मदद के लिए प्रोजेक्ट उदय के अफसरों को गांव भेजा। तब प्रोजेक्ट उदय से टंकी तैयार हुई और आज घरों में पानी पहुंच रहा है।

समिति ने हर घर से नल कनेक्शन के लिए 1200 रुपए जमा कराए। अब हर घर से 80 रुपए शुल्क लिया जाता है। रमनगरा में समिति द्वारा शासन के आर्थिक सहयोग से अब हर घर में शौचालय बनवाया जा रहा है। बैंक में अब इतनी रकम है कि जरूरत पड़ने पर महिलाओं को बहुत कम ब्याज पर लोन दिया जा रहा है।

सीएम से मांग ली रिसीविंग

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार इस गांव से गुजर रहे थे। तब निर्मला के नेतृत्व में महिलाओं ने उनके काफिले को रोक लिया था। चौहान ने महिलाओं से बात की और आर्थिक सहायता के लिए आवेदन लिया। मुख्यमंत्री आवेदन लेकर जाने लगे तो निर्मला ने रिसीविंग मांगी। मुख्यमंत्री ने बाकायदा उन्हें रिसीविंग दी।

Source: bhaskar.com

Thursday, 29 September 2011

रिक्शा चालक का कमाल, बनाई ऐसी मशीन की सब रह गए दंग!

 
 
लुधियाना. उपलब्धि:- मैंगो शेक, टोमैटो सॉस, चिली सॉस और संतरा का रस भी आसानी से बनाया जा सकता है। इसका इस्तेमाल एक बड़े प्रेशर कुकर के रूप में भी किया जा सकता है। इतनी सारी खूबियों वाली इस मशीन की कीमत 1,35,000 रुपये है।
 
पेट पालने के लिए कभी रिक्शा चलाने वाला अब निर्यातक बनने जा रहा है। एलोवेरा और आंवला की खेती और स्वयं की ओर से इजाद की गई मल्टीपरपज फूड प्रोसेसिंग मशीन के जरिए दो लाख रुपये प्रति माह कमाने वाला हरियाणा के यमुनानगर का किसान धर्मवीर जल्द ही अपनी मल्टीपरपज फूड प्रोसेसिंग मशीन का निर्यात केन्या और नाइजीरिया को करने जा रहा है।
 
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीफेट) की ओर से बुधवार को आयोजित कृषि उपकरणों की प्रदर्शनी में भाग लेने आए धर्मवीर ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। धर्मवीर के मुताबिक वह दिल्ली में रिक्शा चलाता था और रोज उसकी आमदनी 300 रुपये थी।
 
एक्सीडेंट में घायल होने के बाद वह गांव लौटा आया और औषधीय खेती करने लगा। जिला बागवानी बोर्ड के सहयोग से वह एक बार अजमेर और पुष्कर दौरे पर गया, जहां उसने आंवला के लड्डू और एलोवेरा का जूस निकालने की विधि सीखी।
 
इसके बाद 2006 से धर्मवीर ने अपने खेत में एलोवेरा और आंवला की खेती शुरू की। एलोवेरा का जूस हाथ से निकालने में काफी दिक्कतों के चलते धर्मवीर को एक ऐसी मशीन बनाने की सूझी, जिसमें गूदा भी निकल आए और दूसरे काम भी आसानी से हो जाएं। इसी सोच के जरिए धर्मवीर ने इजाद कर डाली पोर्टेबल मल्टीपरपज प्रोसेसिंग मशीन।
 
एलोवेरा से जूस और जेल बनाने के अलावा इस मशीन से बिना गुठली तोड़े आंवला और जा मून का चूर्ण, जीरा, धनिया और गुलाब का अर्क निकाल सकते हैं। मैंगो शेक, टोमैटो सॉस, चिली सॉस और संतरा का रस भी आसानी से बनाया जा सकता है। धर्मवीर ने बताया कि इस मशीन का इस्तेमाल एक बड़े प्रेशर कुकर के रूप में भी किया जा सकता है। इतनी सारी खूबियों वाली इस मशीन की कीमत 1,35,000 रुपये है।
 
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद और राष्ट्रीय बागवानी मिशन के सहयोग से धर्मवीर अब तक कुल 62 मशीनों की बिक्री कर चुके हैं और जल्द ही उनकी यह मशीन केन्या और नाइजीरिया भी जाने वाली हैं। धर्मवीर ने बताया कि दो माह पहले इन देशों के एक दल ने उनके फार्महाउस का दौरा किया था और वहीं इस मशीन को खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी। अभी केन्या के लिए ऐसी दो मशीनों को तैयार करने में वे लगे हुए हैं।
 
धर्मवीर के मुताबिक दो हॉर्स पॉवर की इस मशीन से एक घंटे में 200 किलो हर्बल प्रोडक्ट या फलों की प्रोसेसिंग की जा सकती है। धर्मवीर इस मशीन को चलाने के लिए दो दिन का प्रशिक्षण भी देते हैं। उनका दावा है कि इस मशीन को गांव की औरतें भी आसानी से चला सकती हैं और इससे अच्छा रोजगार प्राप्त कर सकती हैं।

Source: bhaskar.com

Wednesday, 28 September 2011

पहाड़ी पर किया ऐसा चमत्कार कि रह गए सब देखने वाले!

 

 
 
धार/इंदौर।कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो जमकर उछालो यारों., इन पंक्तियों को साकार कर रहे हैं धामनोद के पास छोटे से गांव पटलावद के 43 वर्षीय किसान राम पाटीदार। जुनून भी ऐसा कि 200 बीघा में फैली कुंदा पहाड़ी पर एक लाख नीम और रतनजोत के पौधे रोप दिए हैं।

सारे पौधे खुद की नर्सरी में तैयार किए थे। पौधों को पहाड़ी पर पानी मिलता रहे इसीलिए एक लाख जल संरचनाएं (कंटूर ट्रेंच) भी बनाई। अब पौधों की उम्र तीन माह हो गई है। राम मप्र वनौषधीय कृषि भूषण पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।

हरी-भरी होने की ओर तेजी से अग्रसर पहाड़ी को देख राम कहते हैं बचपन से ही उजाड़ पहाड़ियां को देखता आया हूं, सोचता रहता था कि ये हरी-भरी क्यों नहीं हैं। बड़ा होकर खेती शुरू की, उसी से समृद्ध हुआ। फिर वही सवाल कौंधा कि ये पहाड़ी क्यों हरी-भरी नहीं हो सकती और मैंने ऐसा करने की ठान ली।

खेत की एक सीजन की कमाई लगभग 15 लाख रुपए मैंने कुंदा की पहाड़ी पर पौधे रोपने, जल संरचना निर्माण के लिए खर्च कर दी। अब दिल को सुकून है कि तेजी से बढ़ रहे पौधे जब पेड़ बन जाएंगे तो पहाड़ी एक उदाहरण होगी।

अकेली पहाड़ी होगी 121 त्रिवेणी वाली

राम का दावा है कि यहां पहाड़ी पर 121 त्रिवेणी यानी पीपल, नीम और बड़ के पौधे एक साथ लगाए हैं। जब यह बड़े होंगे, तो यह समूचे मप्र की संभवत: पहली पहाड़ी होगी, जहां 121 त्रिवेणी एकसाथ नजर आएंगी।

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देवियां..जिन्होंने डूबती नैया को लगाया भंवर से पार!


 
 
जयपुर. बेटी, बहू हो चाहे मां। नारी जिस रूप में भी हो, लेकिन जब ठान लेती है तो बड़े से बड़ा जिम्मा भी अपने कंधों पर ओढ़ते देर नहीं लगाती। शक्ति रूपा बेटियां बेटों से ज्यादा जिम्मेदारी से चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। जयपुर में ऐसी सैकड़ों बेटियां हैं, जो अपने घर में कमाऊ बेटा बन चुकी हैं। कई बहुएं व माएं हैं जो घर का पूरा खर्च खुद वहन कर मुखिया की भूमिका निभा रही हैं। नवरात्र में हम देवी के नौ रूपों की आराधना कर रहे हैं, लेकिन असल जीवन में पूजा लायक ऐसी बेटियां (देवियां) हैं जिन्होंने अपने घर परिवार को मुश्किलों के भंवर से निकाल नई ताकत दी। घर के बेटे या मुखिया की भूमिका निभाकर परिवार को बखूबी संभाला।  

पापा का कारोबार नहीं चला तो कमाऊ बेटा बनी पूजा साइंस से सीनियर की पढ़ाई कर रही थी कि 2006 में पापा का ट्रांसपोर्ट का धंधा ठप हो गया। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी पूजा के सामने सभी की पढ़ाई बंद होने व घर खर्च में कटौती की मजबूरी आन खड़ी हो गई। जब घर में आय लगभग जीरो हो गई तो पूजा ने 18 साल की उम्र में अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी ओढ़ ली। उसने न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखी, बल्कि रात दिन ट्यूशन पढ़ाकर घर को इस स्थिति में ला दिया कि छोटे भाई बहन की पढ़ाई भी जारी रहे और घर खर्च भी चलता रहे। पिछले पांच साल से पूजा पूरे घर परिवार के लिए कमाऊ बेटा बनी हुई है। इतनी मेहनत के बावजूद उसने न केवल अपनी एमएससी की पढ़ाई गोल्ड मैडल के साथ पूरी की बल्कि छोटे भाई बहन को भी पढ़ाई के साथ कुछ कर गुजरने का हौसला दिया।  

टिनशेड में स्कूल चलाकर दी बंदिशों को चुनौती झोटवाड़ा निवासी रीतिका राठौड़ 12वीं कक्षा में थीं, जब उनकी शादी हुई। घर में कमाई का जरिया न था। समाज परिवार की बंदिशें चारदीवारी से निकलने नहीं दे रही थीं। लेकिन. अपने परिवार में पहली बेटी रीतिका ने कुछ और ठान रखा था। रीतिका के लिए बेटी के जन्म के बाद एक बारगी घर चलाना मुश्किल हो गया था। घर के टिनशेड तले ट्यूशन दी, फिर छोटा-सा स्कूल खोला। पढ़ाई भी जारी रखी। मेहनत का नतीजा है कि आज वे तीन स्कूल व कॉलेज खड़ा कर चुकी हैं। आज उनका पुरुषों से ज्यादा मान है।  

पति नहीं रहे तो शिक्षक बन जोड़ा परिवार शादी के पांच साल बाद ही सावित्री शर्मा के पति का देहांत हो गया। उनके कंधों पर तीन बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। सावित्री ने दुखों के पहाड़ का मुकाबला करने के लिए शिक्षक बनने का निश्चय किया। पाई-पाई जोड़ डिग्री करके शिक्षक बनीं। सरकारी स्कूलों में घर से कई किलोमीटर दूर रह कर भी 40 साल तक दो बेटियों और बेटे को पाला पोसा। बेटियों की धूमधाम से शादी की। आज 68 साल की उम्र में भी वे सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक स्कूल में बच्चों को पढ़ा कर अपना घर परिवार और विकलांग दोहिते का खर्च वहन करती हैं।  

कठपुतलियों के बीच पाला परिवार पांच साल पहले हेमलता को पति ने छोड़ दिया। उनके पास न घर था न पैसे। पति ने तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा तो हेमलता ने मां के साथ पिता का फर्ज भी बखूबी निभाया। अमरूदों के बाग में बैठकर कठपुतलियां बनानी सीखी। समाज सेविका अनीता बस्सी की प्रेरणा से पिछले चार साल से बेटे दीपक को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ा रही हैं। पाई-पाई जोड़ हेमलता ने छोटा-सा घर भी बनाया। वे कहती हैं- पति दारू पीकर मारता था। फिर छोड़कर चला गया। बच्चों को बुराइयों से बचाकर बड़ा आदमी बनाऊंगी।

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Tuesday, 20 September 2011

मात्र 1500 रुपए से खड़ी कर दी 1 करोड़ की कंपनी!


कहते हैं कि अगर टैलेंट हो तो इंसान मिट्टी को छूकर भी सोना बना सकता है। और यह बात 20 साल के अनिमेष सारंगी के उपर बिल्कुल फिट बैठती है।



आज से करीब तीन साल पहले जब सारंगी की उम्र मजह 17 साल की थी तब उन्होंने 1500 के निवेश से ‘अमेजिंग यूथ’ नाम की एक कंपनी बनाई। यह कंपनी जॉब प्लेसेमेंट के क्षेत्र से जुड़ी हुई है। भुवनेश्वर के इस युवा उद्यमी का कहना है कि जब उन्होंने यह कंपनी शुरू की थी तब शरुआती दिन काफी मुश्किलों भरे थे। पहले 5 महीनों में उनकी कंपनी को कोई भी काम नहीं मिला। लेकिन पांच महीने बाद अचानक इस कंपनी के जरिए उन्हे कॉल सेंटर में कुछ भर्तियां करवाने के एवज में 25 हजार रुपए की कमाई हो गई। यहां से उनके लिए कामयाबी के रास्ते खुल गए। और मौजूदा समय में उनकी कंपनी हर तीन महीने में 30-40 लोगों को रोजगार दिलाती है।



आपको बता दें कि हाल ही में सेंट लुइस स्थित जॉन कुक बिजनेस स्कूल की तरफ से अमेजिंग यूथ कंपनी को ग्लोबल स्टुडेंट आंतरप्रेनियोर अवार्ड्स में सेकेंड रनर-अप का अवार्ड दिया गया।

Source: bhaskar.com