Wednesday 28 September 2011

देवियां..जिन्होंने डूबती नैया को लगाया भंवर से पार!


 
 
जयपुर. बेटी, बहू हो चाहे मां। नारी जिस रूप में भी हो, लेकिन जब ठान लेती है तो बड़े से बड़ा जिम्मा भी अपने कंधों पर ओढ़ते देर नहीं लगाती। शक्ति रूपा बेटियां बेटों से ज्यादा जिम्मेदारी से चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। जयपुर में ऐसी सैकड़ों बेटियां हैं, जो अपने घर में कमाऊ बेटा बन चुकी हैं। कई बहुएं व माएं हैं जो घर का पूरा खर्च खुद वहन कर मुखिया की भूमिका निभा रही हैं। नवरात्र में हम देवी के नौ रूपों की आराधना कर रहे हैं, लेकिन असल जीवन में पूजा लायक ऐसी बेटियां (देवियां) हैं जिन्होंने अपने घर परिवार को मुश्किलों के भंवर से निकाल नई ताकत दी। घर के बेटे या मुखिया की भूमिका निभाकर परिवार को बखूबी संभाला।  

पापा का कारोबार नहीं चला तो कमाऊ बेटा बनी पूजा साइंस से सीनियर की पढ़ाई कर रही थी कि 2006 में पापा का ट्रांसपोर्ट का धंधा ठप हो गया। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी पूजा के सामने सभी की पढ़ाई बंद होने व घर खर्च में कटौती की मजबूरी आन खड़ी हो गई। जब घर में आय लगभग जीरो हो गई तो पूजा ने 18 साल की उम्र में अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी ओढ़ ली। उसने न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखी, बल्कि रात दिन ट्यूशन पढ़ाकर घर को इस स्थिति में ला दिया कि छोटे भाई बहन की पढ़ाई भी जारी रहे और घर खर्च भी चलता रहे। पिछले पांच साल से पूजा पूरे घर परिवार के लिए कमाऊ बेटा बनी हुई है। इतनी मेहनत के बावजूद उसने न केवल अपनी एमएससी की पढ़ाई गोल्ड मैडल के साथ पूरी की बल्कि छोटे भाई बहन को भी पढ़ाई के साथ कुछ कर गुजरने का हौसला दिया।  

टिनशेड में स्कूल चलाकर दी बंदिशों को चुनौती झोटवाड़ा निवासी रीतिका राठौड़ 12वीं कक्षा में थीं, जब उनकी शादी हुई। घर में कमाई का जरिया न था। समाज परिवार की बंदिशें चारदीवारी से निकलने नहीं दे रही थीं। लेकिन. अपने परिवार में पहली बेटी रीतिका ने कुछ और ठान रखा था। रीतिका के लिए बेटी के जन्म के बाद एक बारगी घर चलाना मुश्किल हो गया था। घर के टिनशेड तले ट्यूशन दी, फिर छोटा-सा स्कूल खोला। पढ़ाई भी जारी रखी। मेहनत का नतीजा है कि आज वे तीन स्कूल व कॉलेज खड़ा कर चुकी हैं। आज उनका पुरुषों से ज्यादा मान है।  

पति नहीं रहे तो शिक्षक बन जोड़ा परिवार शादी के पांच साल बाद ही सावित्री शर्मा के पति का देहांत हो गया। उनके कंधों पर तीन बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। सावित्री ने दुखों के पहाड़ का मुकाबला करने के लिए शिक्षक बनने का निश्चय किया। पाई-पाई जोड़ डिग्री करके शिक्षक बनीं। सरकारी स्कूलों में घर से कई किलोमीटर दूर रह कर भी 40 साल तक दो बेटियों और बेटे को पाला पोसा। बेटियों की धूमधाम से शादी की। आज 68 साल की उम्र में भी वे सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक स्कूल में बच्चों को पढ़ा कर अपना घर परिवार और विकलांग दोहिते का खर्च वहन करती हैं।  

कठपुतलियों के बीच पाला परिवार पांच साल पहले हेमलता को पति ने छोड़ दिया। उनके पास न घर था न पैसे। पति ने तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा तो हेमलता ने मां के साथ पिता का फर्ज भी बखूबी निभाया। अमरूदों के बाग में बैठकर कठपुतलियां बनानी सीखी। समाज सेविका अनीता बस्सी की प्रेरणा से पिछले चार साल से बेटे दीपक को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ा रही हैं। पाई-पाई जोड़ हेमलता ने छोटा-सा घर भी बनाया। वे कहती हैं- पति दारू पीकर मारता था। फिर छोड़कर चला गया। बच्चों को बुराइयों से बचाकर बड़ा आदमी बनाऊंगी।

Source: bhaskar.com

No comments:

Post a Comment